शार्ट स्टोरी लेखन चेलैन्ज भाग 13 श्रीकृष्ण व भीष्म पितामह संवाद
महाभारत युद्ध समाप्त हौने के बाद युधिष्ठर का राज्याभिषेक होचुका था । श्री कृष्ण बाणौ की शैया पर पडे़ भीषम पितामह से मिलने जा पहुँचे।
उनको देखकर भीष्म बोले," आओ केशव मै इस अन्त समय में आपसे बात करके अपने मन के कुछ भ्रम मिटाना चाहता हूँ। आज्ञा हो तो कुछ पूछ सकता हेँ।"
श्री कृष्ण बोले," अवश्य पितामह निःसंकोच पूछिये जो पूछना है।"
पितामह बोले " कन्हैया इस युद्व मे जो हुआ वह नीतिबिरुद्ध नहीं था क्या?"
कृष्ण ने पूछा," किसकी तरफ से पितामह ?"
"पाण्डवौ की तरफ से क्यौकि कौरवौ की चर्चा करना अब बेकार है क्यौकि वह तो जीवित ही नही है।" पितामह बोले।
कैसे पितामह? श्री कृष्ण ने प्रश्न किया।
"देखो केशव तुम्हे सब मालूम है आचार्य द्रोण का बध निहत्थे कर्ण का यौही मारा जाना दुःशासन का बध दुर्योधन की जंघा पर प्रहार यह सब क्या था? क्या यह सही कह सकते हो केशव ऐसा हमारे किसी संस्कार में नही लिखा है किसी वेद में नही लिखा है।" पितामह ने प्रश्न किया।
पितामह कुछ भी गलत नही हूआ वही हुआ जो होना चाहिए पितामह । श्री कृष्ण बोले।
"नही केशव यह आप कह रहे हो । आपको लोग मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार मानते हो और आप इसे सही साबित कर रहे हो" पितामह ने पूछा।
श्री कृष्ण बोले," पितामह हम शिक्षा अपने इतिहास से लेते है लेकिन निर्णय आज की परिस्थितियौ के आधार पर ली जाती है और महाभारत मे वही हुआ था।"
राम त्रेता युग के नायक थे मै द्वापर का नायक हूँ दौनौ मे बहुत अन्तर है पितामह त्रेता का खलनायक रावण सीता का हरण करता परन्तु उनको अपनी जंघा पर बिठाने की कोशिश भी नही करता है। वह चाहता तो सीता को जनकपुरी से ही लेजा सकता था। क्या रावण ने कभी भरी सभा में किसी स्त्री का चीर हरण करने की कोशिश की थी।
त्रेता का नायक रावण कितना बडा़ शिव भक्त भी था। उसके परिवार में बिभीषण भी थे मन्दोदरी भी थी बाली जैसे खलनायक के परिवार में तारा जैसी विदुषी भी थी अंगद जैसा भक्त भी था।
किन्तु मेरे हिस्से में तो कंस दुर्योधन दुःशासन जरासन्ध शकुनि व जयद्रथ जैसे पापी लोग आये है उनका कैसे भी विनाश करना आवश्यक था पितामह उसके लिए छल का सहारा क्यौन लिया जाय।
पितामह अभिमन्यु का बध हुआ वह सही हुआ था कितने महारथियौ ने अकेले निहत्थे को घेर कर मारा था।
पितामह धर्म की रक्षा करने के लिए हमे कुछ भी करना पडे़ करना होगा। कलयुग मे तो इससे काम नही चलेगा उस समय तो बहुत उल्टा सीधा होगा हमें बहुत कठोर हौना होगा।
पितामह यदि उस समय जनता जाग्रत नही हुई तो धर्म नष्ट होजायेगा।पितामह सब ईश्वर पर छोड़ना भी ठीक नही है। हमे कर्म करना होगा। ईश्वर तो अपने लिखे को भी नही मिटा सकता है।
जिस समय सभी अनैतिक शक्तिया धर्म को नष्ट करने के लिए हम पर हाबी होजाय तब हमे अपने अस्त्र उठाने हौगे और धर्म की रक्षा करनी होगी।
पितामह मैने युद्ध से पहले अर्जुन को भी यही समझाकर प्रेरणा दी थी कि तुम्है अपने धर्म की रक्षा के लिए किसी का भी बध करना पडे़ वह करो वह अपना रिश्तेदार ही क्यौन हो।
श्री कृष्ण की सब बाते सुनकर पितामह ने उनको नमस्कार किया और अपने प्राण त्याग दिए।
इससे हमे प्रेरणा मिलती है कि हमें धर्म की रक्षा के लिए कूछ भी करना पडे़ वह करना चाहिए।
शार्ट स्टोरी लेखनी चेलैन्ज भाग 13 धर्मो रक्षति रक्षितः
जानर:- प्रेरक
नरेश शर
Kusam Sharma
03-Jun-2022 09:03 AM
Nice
Reply
Anam ansari
17-May-2022 09:36 PM
👌👌
Reply
Fareha Sameen
17-May-2022 09:15 PM
Nice
Reply